बलिहारी बलिहारी म्हारे सतगुरुवां ने बलिहारी | Balihari Balihari Mhare Satguru ne Balihari
बलिहारी बलिहारी म्हारै सतगुरुवाँ ने बलिहारी ।
बन्धन काट किया जीव मुक्ता, और सब विपत विदारी ॥
वाणी सुनत परम सुख उपज्या, दुर्मति गई हमारी ।
वाणी सुनत परम सुख उपज्या, दुर्मति गई हमारी । हरी हरी।
करम-भरम का संशय मेट्या-दिया कपाट उघारी
करम-भरम का संशय मेट्या-दिया कपाट उघारी ॥ १॥
बलिहारी बलिहारी म्हारै सतगुरुवाँ ने बलिहारी ।
करम-भरम का संशय मेट्या-दिया कपाट उघारी।
बलिहारी बलिहारी म्हारै सतगुरुवाँ ने बलिहारी ।
बन्धन काट किया जीव मुक्ता, और सब विपत विदारी ॥
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माया, ब्रह्म भेद समझाया, सोहं लिया विचारी ।
माया, ब्रह्म भेद समझाया, सोहं लिया विचारी । हरी हरी।
पूरण ब्रह्म रहे उर अन्दर, काहे से देत विडारी
पूरण ब्रह्म रहे उर अन्दर, काहे से देत विडारी ॥ २ ॥
बलिहारी बलिहारी म्हारै सतगुरुवाँ ने बलिहारी ।
पूरण ब्रह्म रहे उर अन्दर, काहे से देत विडारी
बलिहारी बलिहारी म्हारै सतगुरुवाँ ने बलिहारी ।
बन्धन काट किया जीव मुक्ता, और सब विपत विदारी ॥
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मो पर दया करी मेरा सतगुरु अबके लिया उबारी ।
मो पर दया करी मेरा सतगुरु अबके लिया उबारी । हरी हरी।
भव सागर सँ डूबत त्याऱ्या, ऐसा पर उपकारी
भव सागर सँ डूबत त्याऱ्या, ऐसा पर उपकारी ॥ ३ ॥
बलिहारी बलिहारी म्हारै सतगुरुवाँ ने बलिहारी ।
भव सागर सँ डूबत त्याऱ्या, ऐसा पर उपकारी
बलिहारी बलिहारी म्हारै सतगुरुवाँ ने बलिहारी ।
बन्धन काट किया जीव मुक्ता, और सब विपत विदारी ॥
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गुरु दादू के चरण कमल पर रखूँ शीश उतारी ।
गुरु दादू के चरण कमल पर रखूँ शीश उतारी । हरी हरी।
और क्या ले आगे रखूँ-‘सुन्दर’ भेंट तिहारी
और क्या ले आगे रखूँ-‘सुन्दर’ भेंट तिहारी ॥ ४॥
बलिहारी बलिहारी म्हारै सतगुरुवाँ ने बलिहारी ।
और क्या ले आगे रखूँ-‘सुन्दर’ भेंट तिहारी
बलिहारी बलिहारी म्हारै सतगुरुवाँ ने बलिहारी ।
बन्धन काट किया जीव मुक्ता, और सब विपत विदारी ॥
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